जब ज्योतिष की सलाह पर शरद यादव ने राजीव गांधी के खिलाफ लड़ा चुनाव, लालू यादव से भी खूब भिड़े... 5 अनसुने किस्से जिनकी प्रधानमंत्री मोदी करते थे हमेशा चर्चा

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जब ज्योतिष की सलाह पर शरद यादव ने राजीव गांधी के खिलाफ लड़ा चुनाव, लालू यादव से भी खूब भिड़े... 5 अनसुने किस्से जिनकी प्रधानमंत्री मोदी करते थे हमेशा चर्चा

 पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव के निधन पर उन्हें पसंद करने वाला हर कोई अपने-अपने तरीके से दुख व्यक्त कर रहा है। युवा शरद यादव के जानने की कोशिश कर रहे हैं। 11 बार सांसद रहे और तीन अलग-अलग राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार) की अलग-अलग सीटों से 11 बार सांसद रहे शरद यादव के लंबे राजनीतिक अनुभव के आरे में हर कोई जानना चाहता है। यूं तो शरद यादव का लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है, लेकिन उनकी जिंदगी के पांच ऐसे राजनीतिक किस्से जो बेहद दिलचस्प हैं, आइए उसे जानते हैं



जेल में रहते हुए 25 साल की उम्र में सांसद बने थे शरद यादव


25 साल एक माह 7 दिन की उम्र में शरद यादव पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े थे। उस जयप्रकाश नारायण का आंदोलन ऊफान पर था। उस वक्त शरद यादव मीसा कानून के तहत जेल में थे। सरदार सरोवर डैम की ऊंचाई बढ़ाए जाने का विरोध करने के चलते शरद यादव को जेल में डाला गया था। देश में इमरजेंसी लागू होने से पहले ही शरद यादव एक बार 7 महीने और दूसरी बार 11 महीने जेल में रहे। जेल में रहने के दौरान ही शरद यादव सर्वोदय विचारधारा के नेता दादा धर्माधिकारी के संपर्क में आए। धर्माधिकारी और जयप्रकाश नारायण बेहद अच्छे मित्र थे
। उसी दौरान कांग्रेस के कद्दावर नेता और सांसद सेठ गोविंद दास का निधन हो गया था। उनके निधन से खाली हुई सीट पर जयप्रकाश नारायण ने शरद यादव को जबलपुर सीट से पीपुल्स पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया। उस वक्त शरद यादव जेल में ही बंद थे। 1974 में जेपी ने शरद यादव को अपना पहला कैंडिडेट घोषित किया था। उस वक्त आंदोलन पीक पर था, जिसका शरद यादव को फायदा मिला और वह कांग्रेस के गढ़ वाली सीट पर एक लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। दिलचस्प बात यह है कि वह चुनाव बांग्लादेश को लेकर पाकिस्तान से हुए युद्ध में मिली जीत के बाद हुआ था। उस उक्त शरद यादव का चुनाव चिन्ह हलदर किसान था।

ज्योतिष की सलाह पर राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारे गए शरद यादव


दूसरा किस्सा यह है कि संजय गांधी की मौत के बाद अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इस सीट से राजीव गांधी चुनाव मैदान में थे। किसी ज्योतिष की सलाह पर चौधरी चरण सिंह ने शरद यादव को उस उपचुनाव में शरद यादव को राजीव गांधी के मुकाबले उपचुनाव में उतारा था। अमेठी उपचुनाव में शरद यादव को चुनाव मैदान में उतारने के पीछे नाना जी देशमुख की भी सलाह थी। ज्योतिष ने नाना जी देशमुख और चौधरी चरण सिंह से कहा था कि अमेठी से राजीव गांधी चुनाव हार जाएंगे। इसका सीधा असर केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार पर होगी। इसी बात को आधार बनाकर शरद यादव को अमेठी उपचुनाव में उतारा गया था। हालांकि शरद यादव इस चुनाव में नहीं उतरना चाहते थे, लेकिन नाना भाई देशमुख ने कहा कि इस चुनाव में वह खुद लड़ रहे हैं, आप केवल चेहरा हैं। शरद यादव को जीत दिलाने के लिए चौधरी चरण सिंह और नाना भाई देशमुख ने ना केवल खुद खूब प्रचार किया था बल्कि विपक्ष के कई कद्दावर नेताओं से रैलियां कराई थी। हालांकि शरद यादव वह चुनाव हार गए थे।

जब कोर्ट की निगरानी में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में लालू यादव से भिड़े थे शरद यादव

साल 1997-98 की बात है। जनता दल के अंदन अध्यक्ष के चुनाव में शरद यादव जीते। लेकिन इस बात से लालू यादव नाराज हो गए। उन्होंने चारा घोटाले में जेल जाने से पहले जनता दल को तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल बना ली थी। जनता दल के अध्यक्ष का यह चुनाव अदालत की निगरानी में हुआ था। यह भारतीय इतिहास की पहली घटना थी, किसी राजनीतिक दल के अध्यक्ष का चुनाव अदालत की निगरानी में हुआ था। संगठन के उस चुनाव में मधु दंडवते को पर्यवेक्षक बनाया गया था। उस वक्त लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे फिर भी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहना चाहते थे। गौर करने वाली बात यह है कि 1990 से 1995 तक दिल्ली से सबसे ज्यादा राजनीतिक सपोर्ट शरद यादव ने ही लालू यादव को दिया था। शरद यादव इस बात को लेकर आखिरी वक्त तक दुखी रहे जनता दल से मुलायम सिंह यादव, चमन भाई, लालू प्रसाद यादव सरीखे नेता क्यों अलग हो गए वह आज तक समझ नहीं पाए।