आखिर क्यों लगता हैं चंद्र ग्रहण, जानिए इसके पीछे की रोचक दास्ता

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आखिर क्यों लगता हैं चंद्र ग्रहण, जानिए इसके पीछे की रोचक दास्ता


साल 2020 का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी को लगा था और अब दूसरा चंद्र ग्रहण शुक्रवार 05 जून को लगने जा रहा। 5 जून को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर उपछाया चंद्र ग्रहण होगा। 5 जून को लगने वाला यह ग्रहण कुल 3 घंटे और 18 मिनट का होगा।

डेस्क। साल 2020 का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी को लगा था और अब दूसरा चंद्र ग्रहण शुक्रवार 05 जून को लगने जा रहा। 5 जून को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर उपछाया चंद्र ग्रहण होगा। 5 जून को लगने वाला यह ग्रहण कुल 3 घंटे और 18 मिनट का होगा। येचंद्र ग्रहण रात 11 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर अगली तारीख 6 जून की रात 2 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। 12 बजकर 54 मिनट पर पूर्ण चंद्रग्रहण होगा।

विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है। कई बार पृथ्वी घूमते-घूमते सूर्य व चंद्रमा के बीच में आ जाती है. इस स्थिति में पृथ्वी चांद को अपनी ओट से पूरी तरह से ढक लेती है, जिस कारण चांद पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है। इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार, ग्रहण लगने का कारण छाया ग्रह राहु-केतु हैं, इस संबंध में शास्त्रों में एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है। जो इस प्रकार है-

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवासुर संग्राम में जब समुद्र मंथन हुआ तो उस मंथन से 14 रत्न निकले थे उनमें अमृत का कलश भी एक था। अब देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया।
मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ।

लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ। वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा। देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी।

जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। जिस कारण ये कुछ दफा पूर्णिमा के दिन चांद का और अमावस्या के दिन सूर्य का ग्रास कर लेते हैं।