कोरोना वायरस कहां से आया और किससे आया इसका अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिल सका है, लेकिन कई शोध ये बताते हैं कि चीन के वुहान से ही ये वायरस चमगादड़ के जरिए इंसानों में पहुंचा है। इस बारे में कुछ शोध कहते हैं कि क्योंकि चमगादड़ में बीमारी फैलाने वाले होस्ट पाए जाते हैं, इसलिए यह इंसानों तक पहुंचने में सफल रहा।
शोध बताते हैं कि किसी जानवर से इंसान में जाने के लिए एक होस्ट की जरूरत होती है जो अपने अंदर बीमारी रखते हुए उसे परिवर्तित कर दूसरों तक फैला सके और यहां ये काम चमगादड़ ने किया है।
चमगादड़ ही क्यों?
दरअसल, चमगादड़ में कोरोना वायरस रहते हुए लगातार खुद में बदलाव करते हुए खुद को अधिक खतरनाक बना सकता है। इस बारे में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज में इस साल पब्लिश एक रिसर्च पेपर के अनुसार, कोई भी वायरस किसी जीव में कुछ खूबियां तलाशता है जैसे...
-उस जीव की आयु लंबी होनी चाहिए
-जो बहुत बड़ी संख्या में एक साथ रहता हो
-उसके होस्ट जीव का क्लोज सोशल इंटरेक्शन हो
-जीव में उड़ने की अच्छी क्षमता हो ताकि एक बार में लंबी दूरी तय कर पाएं और वायरस को दूर-दूर तक फैल पाए
और ये सभी खूबियां चमगादड़ में पाई जाती हैं। एक चमगादड़ की सामान्य उम्र 16 से 40 साल के बीच होती है। वो झुंड में रहती है और चमगादड़ तेजी से उड़ती भी है।
चमगादड़ को क्यों नहीं मारता वायरस?
कोरोना वायरस जब किसी जीव में फैलता है तो वो उसके अंदर तेजी से फैलते हुए सूजन बढ़ाता है लेकिन चमगादड़ में ऐसा नहीं होता। क्योंकि चमगादड़ के इंफ्लेमेट्री रिस्पॉन्स में डिफेक्ट होता है और वो नार्मल रहती है।
-इसके अलावा चमगादड़ों में नेचुरल किलर सेल्स की ऐक्टिविटी काफी कम होती है। यानी चमगादड़ के सेल्स अपने आप नहीं मरते और इसी वजह से चमगादड़ के अंदर यह वायरस होने के बाद भी उसके सेल्स मरते नहीं हैं बल्कि उसको अपने साथ रखते हैं।
-इतना ही नहीं, चमगादड़ का मेटाबॉलिक रेट हाई होने के कारण उसमें अधिक मात्रा में रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (ROS) बनती हैं, जो कोरोना वायरस को तेजी से खुद को दोहराने से रोकती है और म्यूटेशन रेट बढ़ा देती हैं।
- म्यूटेशन के कारण ही कोरोना चमगादड़ को आसानी से छोड़ कर दूसरे होस्ट यानि जीव में आसानी से जा पाता है। बता दें, कोरोना का बार-बार म्यूटेशन होना उसको अधिक घातक बना देता है।
- वही, चमगादड़ में स्ट्रॉन्ग इम्यून रिस्पॉन्स नहीं होता और चमगादड़ के अंदर फेफड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता हैं। इसलिए चमगादड़ के फेफड़ों और शरीर में सूजन उतनी नहीं आती कि उसे वायरस के कारण सांस लेने में तकलीफ हो।
- क्योंकि चमगादड़ के अंदर इंटरफेरॉन रेस्पॉन्स बहुत मजबूत होता है। इसलिए कोरोना चमगादड़ के अंदर तेजी से अपने प्रतिरूप नहीं बना पाता। इंटरफेरॉन वो कैमिकल्स होते हैं, जो शरीर में किसी भी वायरस के रेप्लिकेशन (वायरस की कॉपी) को रोकते है।
बता दें, इस शोध में यह भी बताया गया है कि चमगादड़ बेहद स्ट्रोंग होती है इसलिए पिछले 20 सालों में चमगादड़ से ही तीन तरह के कोरोना वायरस मानवों की दुनिया में आए हैं।