कोरोना को ग़रीबों ने नहीं, अमीरों ने फैलाया- नज़रिया

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कोरोना को ग़रीबों ने नहीं, अमीरों ने फैलाया- नज़रिया

किसी भी महामारी की सबसे बड़ी मार हाशिए पर मौजूद ग़रीब तबका सहता है. लेकिन लोग इसी असहाय वर्ग को इसके फैलने की वजह मानते हैं.
आम तौर पर अमीर और मध्य वर्ग का मानना यह रहता है कि महामारियां ग़रीबों के कंधों से होकर पैर पसारती हैं. लेकिन, अगर इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि महामारियां अभिजात्य और उच्च तबके के हाथों ही मध्य वर्ग और फिर ग़रीबों तक पहुंचती हैं.

मैं इलाहाबाद के पास एक गांव में रहने वाले एक उम्रदराज़ शख्स से फ़ोन पर बातें कर रहा था.
बात कोरोना और उससे बचने की हिदायतों से जुड़ी हुई थी. बात के बीच में उन्होंने मुझसे पूछा, "कोई भी महामारी ग़रीबों के कंधों पर चढ़कर आती है या अमीरों के."
यह मेरे लिए एक यक्ष प्रश्न की तरह था. शहरी मध्य वर्ग के किसी भी आदमी से अगर आप यह सवाल करें तो वह तुरंत बोलेगा, "ये झुग्गी-झोपड़ी वाले, मज़दूर, स्लम में रहने वाले लोग गंदे ढंग से रहते हैं और गंदगी फैलाते हैं. इन्हीं गंदगियों से महामारियां फैलती हैं."

क्या हैं इतिहास के सबक?

अगर दुनिया में अब तक आई महामारियों के अनुभवों को खंगालें तो हमें चौंकाने वाला जवाब मिलता है.
चाहे सन् 165 से 180 के मध्य फैला एन्टोनाइन प्लेग हो या 1520 के आसपास दुनिया भर में फैला चेचक (स्मॉल पॉक्स) या पीला बुखार (येलो फीवर), रसियन फ्लू, एशियन फ्लू, कॉलरा, 1817 के दौरान फैला इंडियन प्लेग हो, सभी के फैलने के रूट की मैपिंग करें तो साफ़ जाहिर होता है कि इन सभी महामारियों का पहला कैरियर अमीर वर्ग के कुछ लोग या अमीर वर्ग में एंट्री करने की जद्दोजहद करता मध्य वर्ग का एक तबका ही रहा है.
कौन सा तबका है ज़िम्मेदार?
ये सभी महामारियां दुनिया भर में प्रायः दुनिया की खोज में लगे कुछ नाविकों, कई व्यापारियों, कुछ समुद्री जहाज के चालकों एवं उसमें कार्यरत लोगों, युद्ध में जाने और युद्ध से आने वाले सैनिकों, पर्यटकों के एक तबके तथा उपनिवेशवाद के प्रसार के समय औपनिवेशिक शक्तिशाली देशों की व्यापारिक कंपनियों के आधिकारियों एवं कर्मचारियों या औपनिवेशिक शासन के अभिजात्य अफसरों के कंधों पर चढ़कर एक देश से दूसरे देशों में फैलती रही हैं.
फिर उन देशों और समाजों के 'कम गतिशील मध्य वर्ग' इनके माध्यम से एक 'निष्क्रिय निर्दोष ग्रहणकर्ता' के रूप में इन महामारियों का शिकार होकर उन्हें निम्न वर्ग एवं समाज के अन्य तबकों तक फैलने का कारण बनता रहा है.
अभिजात्य वर्ग और विदेश में आवाजाही करने वालों ने फैलाया कोरोना
अभी जिस कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए आज दुनिया का हर देश संघर्ष कर रहा है, उसने भी कुछ पर्यटकों, दुनियाभर के मुल्कों में हवाई यात्रा करने की क्षमता रखने वालों के एक समूह, विदेशों में कार्यरत लोगों का तबका, ग्लोबल रूप से स्वीकृत गायकों, कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों और कुछ बड़े नौकरशाहों, पांच सितारा होटलों में पार्टी आयोजित करने की शक्ति रखने वालों का एक तबका, ग्रीस, स्विट्जरलैंड और फ्रांस में हनीमून मनाने वालों मे से कुछ के देह में प्रवेश कर हमारे समाजों में फैलने का अवसर प्राप्त किया है.
बातचीत के बीच हमारे एक मित्र ने कहा, "भाई! यह कोरोना भी ग़ज़ब बीमारी है, यह हवाई जहाज पर चलता है, बड़े होटलों में ठहरता है. यह भूमण्डलीकरण और नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था का सर्वाधिक फायदा उठाने वाले ग्लोबल हुए कुछ लोगों के साथ हमारे देश में पांव पसारता गया है."
"इनसे ट्रैक्सी ड्राइवर, होटलों के बेटर, दुकानदारों, सैलूनवालों एवं देश के भीतर एक शहर से दूसरे शहर में कमाने गए लोगों को शिकार बना रहा है. अगर निरपेक्ष ढंग से देखें तो विभिन्न समाजों के प्रभावशाली तबके के कुछ लोगों की गति के साथ यह कोरोना महामारी गरीब वर्ग तक पहुँच रहा है."
हमारे समाजों का गरीब समुदाय, बिहार एवं उत्तर प्रदेश से मुंबई, पुणे, दिल्ली जाकर काम करने वाले खुले में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले प्रवासी मजदूर इसके प्रथम वाहक नहीं रहे हैं.
ग़रीब नहीं होते वायरस के प्रथम कैरियर
जिनकी जिंदगी में हम गंदगियां देखते हैं, जिन्हें हम गंदगियों और बीमारियों के प्रसार का कारण मानते हैं, वे इस बीमारी के 'प्रथम कैरियर' नहीं हैं.
दुनिया भर में महामारियों के प्रसार के ये अनुभव हमें अपने 'कॉमन सेन्स' में एक जरूरी परिवर्तन की मांग करते हैं. 'गरीबी' एवं बीमारी के प्रसार की आम अवधारणा को हमें अपने दिल और दिमाग से निकालना ही होगा. नहीं तो हमारे महानगरों और मेट्रो का अभिजात्य वर्ग इन मजदूरों, गरीबों, झुग्गी-झोपड़ी वालों को उपेक्षा की नजरों से ही देखता रहेगा.
यह विदित तथ्य है कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन का सबसे ज्यादा खामियाजा वह दिहाड़ी मजदूर, इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाला श्रमिक, गांव का किसान उठा रहा है, जो इन महामारियों का कहीं से कारण नहीं रहा है.
हालांकि, यह सुखद है कि हमारी राजसत्ता एवं सरकार आज उनकी समस्याओं के प्रति संवेदित हो कोरोना कवर के तहत इन संवर्गों को ध्यान में रख अनेक योजनाएँ लागू की हैं.
ऐसी ही संवेदनशीलता एवं यर्थाथ नजरिए से हमें महामारियों के प्रसार की गतिकी को समझना होगा.