इस तस्वीर में दो ऐसे शख्स दिख रहे हैं जिनकी दोस्ती और 'दुश्मनी' के किस्से का जिक्र सियासी गलियारों में खूब होता रहा है। दोनों ने साथ चलना शुरू किया और आखिर तक साथ ही रहे। रिश्ते निभाना और हर काम को अंजाम तक पहुंचाना इस दोस्ती की खासियत थी। बीच में कुछ तल्खियां आईं लेकिन मजाल है कभी दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ जबान भी खोला हो। आज इस दोस्ती का एक सिरा टूट गया। आज उस दोस्त के नेताजी नहीं रहे। ताबूत में आंखें बंद किए चिरनिंद्रा में सो रहे हैं। हल्के हाथों से ताबूत को सहलाते दिख रहे दूसरे शख्स हैं आजम खान। ताबूत को छूते हुए इसका ख्याल जरूर रख रहे हैं कि कहीं उनके दोस्त को कुछ नुकसान न पहुंचे। एक सिरा था जो टूट गया। आंखों में आंसू जज्ब किए थे। आखिरी बार अपने दोस्त को छू रहे थे। जेहन में हर वो यादें उमड़-घुमड़ रही होंगी जिन्हें अब वे तन्हा याद करेंगे।
अपने यार को आखिरी बार निहारते आजम
यूपी के सियासी गलियारों में इस दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। हालांकि, इस दोस्ती में खट्टी-मिट्ठी यादें भी हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में इस दोस्ती को किसी की नजर लग गई थी। तीन दशक में ऐसा पहली बार हुआ था जब नेताजी और आजम में तनाव दिखा था। इसका परिणाम आजम को पार्टी से निकालने के रूप में सामने आई थी। हालांकि, इस तल्खी के बाद भी दोनों ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ बदजुबानी नहीं की।
पर दोनों दोस्तों को ये दूरी भाई नहीं। 4 दिसंबर 2010 को आजम की फिर से एसपी में वापसी हो गई। एसपी में वापसी पर आजम ने एक शेर के जरिए नेताजी से अपने रिश्तों का जिक्र किया था। 'कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा, तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा, ये सोचकर कि तेरा इंतजार लाजिम है, तमाम उम्र घड़ी की तरफ नहीं देखा।'.
पर जब आज जब दोस्ती का एक सिरा टूट गया तो आजम को अपने नेताजी के जुदाई का अहसास हो रहा था। आंखों आंसू को जज्ब तो कर गए थे। पर उन्हें पता था ये आंसू तन्हाई में निकलेंगे। हर वो पुरानी यादें अब आजम के दिल के अंदर दफन हो गई होंगी। अब वो उन यादों के जरिए ही इस दोस्ती को आगे बढ़ाना चाह रहे होंगे। अलविदा मेरे नेताजी!